जुस्तजू भाग --- 22
तू दिल मेरा, मैं तेरी धड़कन।
मिले फिर जुदा क्यों है?
तू रूह मेरी, मैं तेरा बदन।
फिर दूरियां क्यों है?
तू ख़्वाब मेरा, मैं तेरी नींद।
फिर अलग क्यों है?
तू मुझमें बसी जान की तरह।
तू छोड़ गई, फिर हम जिंदा क्यों हैं??
उधर आरूषि अपने भाई की चिंता और इलाज़ में डूबी थी तो इधर निशांत दो बिछड़ों को मिलाने की हर तरकीब जुगाड रहा था। सबसे पहले डॉक्टर रहमान के घर वह अनुपम को ले गया। अपने बच्चे से मिलकर उसकी आंखों में आंसू थे और शब्द !!! वह जैसे बोल ही नहीं पा रहा था। रहमान का परिवार भी आश्चर्य से सारी कथा सुन रहा था।
"ओह !! इसलिए राधा हॉस्पिटल से डरती थी। कहीं उसका अतीत इसके लिए ज़िम्मेदार था।" डॉक्टर सलमा के मुंह से निकला।
"हम्म, तब ही वह अपनी प्रेगनेंसी के दौरान अपसेट थी।"डॉक्टर रहमान बोले।
"हां शायद यही वजह होगी। उसे अपने बच्चे से जुड़ने और ख़ुद के वजूद में उसे महसूस करने का अहसास ही नहीं हुआ होगा।" उनकी अम्मी को आरूषि पर तरस और उसके बच्चे पर प्यार आ रहा था।
"बेटे, बच्चा बेशक आपका है और डॉक्टर आरूषि आपकी शरीक ए हयात हैं। पर सैयद साहब ने उसे अपनी बेटी रुखसाना की तरह ही दर्जा दिया है तो उनकी इजाज़त.....।"
"बेशक आंटी, मैं उनका शुक्रिया कैसे अदा करूं, समझ नहीं पा रहा।"अनुपम ने सलमा की बात पूरी होने से पहले ही कहा।
"वो कर्ज़ राधा पहले ही मेरे भाई की जान बचाकर अदा कर चुकी है। शायद अल्लाह ने इसी वजह से मुझे लखनऊ उतरने को मजबूर किया।"रुखसाना अपने पति के साथ वहां पहुंची थी।
"आओ रुख, अब अख़्तर भाई कैसे हैं?"
"जिसकी बहन राधा जैसी हो, मौत भी दरवाजे से क़दम खींच लेती है।" रुखसाना आरूषि की इस क़दर अहसानमंद थी कि बात कहते समय भी उसकी आवाज़ लरज रही थी।
"आपके चर्चे हमारे प्रदेश में और हमारी कौम में बहुत है, अनुपम साहब। हम खुशनसीब हैं कि आपसे मिलने का मौका हम सभी को मिल रहा है।"रुखसाना के पति ने अनुपम की ओर हाथ मिलाने को बढ़ाते हुए कहा।
"हम अब भाई हुए तो मिलना हमारी भी खुशनसीबी है।"अनुपम उनके गले लग गया।
"पर इस सब में हम आरूषि की हालत को भूल गए हैं।"निशांत ने दख़ल दिया।
"शिवेंद्र और सौम्या लखनऊ से उसके डॉक्टर को लेकर फ्लाइट पकड़ चुके हैं। अब उसको कोई तकलीफ़ छू भी नहीं सकेगी।"अनुपम ने जवाब दिया, "पर मम्मी की तबियत ज्यादा ठीक नहीं रहती तो क्या आप सभी मुझे अपने बच्चे को इसकी नानी के साथ मुंबई भेजने की इजाज़त देंगे?"
"पर आरूषि......"
"उसे अब अपने साथ लेकर ही जाऊंगा, सलमा आंटी।"
"और खुशखबरी यह भी है कि वे डॉक्टर रॉय और डॉक्टर स्वामीनाथन दोनों ही भारत आ चुके हैं और डॉक्टर आरूषि से मिलने को यहां गुवाहाटी आ रहे हैं। अगर डॉक्टर आरूषि उन्हें अख्तर को डील करने की मंजूरी देंगी तो डॉक्टर रॉय ने अख़्तर को संभालने की जिम्मेदारी लेने को भी कहा है। वे दोनों इस यंग डॉक्टर से बेहद प्रभावित हैं।" निशांत ने सूचना दी।
"आपा, आप और भाईजान मुझे अपनी बहिन को ले जाने की इजाज़त अब्बू और अम्मी से दिलाने में मदद करेंगे?"अनुपम ने रुखसाना और उसके पति से हाथ जोड़कर कहा।
"भाई, राधा आपकी अमानत...... रुखसाना का स्वर भर्रा गया।"
"वह आपकी पहले है अब, विश्वास करें इस घर की बेटी को अब्बू अम्मी से मांगकर ही ले जाऊंगा।" अनुपम ने रुखसाना को धैर्य बंधाया।
*******
शिवेंद्र और सौम्या के बारे में उनके बड़ों ने मंजूरी दे दी थी। दोनों ने आरूषि के मिलने की जानकारी अपने परिवारजन और प्रिंसिपल को को दी तो उन्हें अपने परिवारों और पीजीआई के डॉक्टर की साथ चलने की सहमति भी मिल गई थी। कुछ देर में ही उनकी फ्लाइट गुवाहाटी पहुंच गई। रुखसाना ने अपने पति को भेजकर उन्हें अपने घर ले आने की व्यवस्था कर दी थी और ख़ुद अनुपम और मां को निशांत के यहां से ले आई थी। शाम को डॉक्टर रहमान और डॉक्टर सलमा हॉस्पिटल पहुंच गए और सैयद साहब और अस्मां बेगम को सब समझाकर जबरदस्ती घर भेज दिया था।
"रहमान मेरी चिंता अख़्तर नहीं राधा है।"
"उसके डॉक्टर को मैं यहां ले आया हूं। आप इजाज़त दे तो आपसे मिलवा दूं ?"
"भाई फिर मैं और ये जनाब है न दोनों को संभालने के लिए ! फिर राधा के पति से मिलना भी चाहिए आपको।"डॉक्टर सलमा ने दख़ल दिया।
"अब्बू मैं और आपके दामाद भी यहां रहेंगे तो आप दोनों को कुछ समय आराम का भी बनता है न?"रुखसाना भी अपने पति के साथ आ पहुंची थी तभी।
"नहीं, आप अम्मी अब्बू को ले जाइए। आज मैं ही रुकूंगा।"
" आप दोनों भी इनके साथ ही जायेंगे। यहां हम दोनों ही रहेंगे फिर राधा और उसके डॉक्टर भी यहीं होंगे। हॉस्पिटल में ज्यादा लोगों को रुकने की इजाज़त नहीं होती और यह फाइनल है।"डॉक्टर रहमान बोले। वे भी अब सभी से दिल से जुड़ गए थे और राधा को भी अपनी बच्ची की तरह मान लिया था।
******
सैयद साहब का घर भर चुका था। अख़्तर की जान बचने से दोनों के दिल में अब सुकून था। रुखसाना और उनके दामाद ने उन्हें रास्ते में सारी बातें समझा दी थी।
"बेटे आपका घर समझें इसे।"अनुपम से मिलते ही वह बोले।
"अब्बू आपकी बेटी लिवाने आया हूं। क्या इजाज़त मिलेगी?"
"पर राधा....? आप जानना नहीं चाहेंगे कि किस दौर से गुजरी है वह?"
"अम्मी कुछ कुछ जानता हूं और विश्वास दिलाता हूं कि आपकी बेटी का पूरा ध्यान रखूंगा मैं। मम्मी ने मुझे बाकी सारा भी बता दिया है। उसके अतीत में लोगों के व्यवहार से उसका दिल टूटा है और मेरे हादसे ने शायद उसके मन के वहम को उसके लिए सच्चाई में बदल दिया है।"
"आप सही जा रहे हैं।" तभी आरूषि के डॉक्टर भी वहां आ गए।"आरूषि को बीती बातें भुलाने और उसके मन से वहम को निकालने में आप सभी को मिलकर काम करना होगा ।"
"डॉक्टर, क्या आपको कुछ अधिक पता चला?"
"पूरा तो नहीं पर किशोरावस्था में हुए हादसों में उसके परिवार के व्यवहार ने उसके मन में ख़ुद के अपशगुनी होने और नज़दीकी रिश्तों पर होने वाले हादसों के लिए ख़ुद को जिम्मेदार मानने की भावना आ गई है।"
"ओह !!! पर इतनी जहीन बच्ची इस दकियानूसी सोच की शिकार ???"
"किशोरावस्था बहुत नाज़ुक होती है, सैयद साहब। और अक्सर बुद्धिमान बच्चे इस तरह के डिप्रेशन के आसान शिकार होते हैं। नज़दीकी लोगों को आशाएं बहुत होती हैं इनसे और इनके डिप्रेशन को इनका वहम मानकर ईलाज करवाने की सोच दूर दूर तक नहीं होती। अनुपम जैसे पति भी किस्मत से ही मिलते हैं जो बिना तरस खाए इनका भरपूर साथ देते हैं।"
"या खुदा, मेरी बच्ची पर रहम फरमा। उसे इस जंजाल से निकाल ले।"अम्मी के मुंह से निकला।
"आपकी दुआएं जरूर असर करेंगी। पर अभी आप सभी का यह प्यार और अपनापन उसे डरा रहा है। वह अख़्तर के साथ हुए हादसे के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार मान रही है और उसने शिवेंद्र और सौम्या से बेहद फॉर्मल व्यवहार किया है।"
"तो आप सुझाव या इलाज़ बताएं।"
"अभी उसे केवल एक समझदार और सबसे नज़दीकी साथी की जरूरत है जो न केवल उसकी बीमारी को समझता हो बल्कि उसके मन से इस गलतफहमी को दूर करने में मददगार हो। मेरी राय में यह अनुपम से बेहतर कोई नहीं हो सकता है।"
"मैं तैयार हूं डॉक्टर।"
"आपको केवल उसके आज ही नहीं बल्कि उसके पास्ट से शुरुआत करनी होगी।"
"उसका पास्ट भी मेरे साथ में ही गुजरा है भले ही वह उसको भुला चुकी है।"
"अभी बेहद सावधान रहने की जरूरत है आपको अनुपम, आपकों हमेशा उसके साथ ही रहना होगा वह भी अकेले।"
"पर उसके साथ एक मासूम जान भी तो जुड़ी है, अब्बू और अनुपम भाई आप इजाज़त दें तो उसे हम अपने साथ ले जाएं।"रुखसाना जो अब तक चुप थी, बोल पड़ी। उसने रहमान साहब की अम्मी से आते ही अनुपम और आरूषि के बच्चे को संभाल लिया था। दोनों भाई बहिन उससे जुड़ चुके थे और उसे अपने परिवार का ही मानने लगे थे।
"आपका प्यार बहुत कीमती है आरूषि के लिए, बल्कि वही है जिसके कारण ये दो जानें जिंदा है और इतनी काबिल न्यूरो सर्जन भारत के लिए अनमोल है। पर अभी बच्चे और आरूषि के लिए दूरी खतरनाक हो सकती है। उसे कभी भी अपने बच्चों की नज़दीकी की तत्काल जरूरत हो सकती है। मेरे सुझाव में इसे भी मुम्बई इसके भाई के पास ही रहना चाहिए। अनुपम आप आरूषि को अपनें साथ मुंबई में ही रखें। शायद अब वह मुझसे भी ईलाज न करवाए। मैंने मुंबई के बेहद काबिल साइकैटरिस्ट और मेरे मित्र डॉक्टर देशपांडे को सारी केस हिस्ट्री समझा दी है। अब वे आपकी मदद करेंगे।"
" डॉक्टर रॉय और डॉक्टर स्वामीनाथन ने भी अख़्तर को देख लिया है। वह अब बिलकुल ठीक है। डॉक्टर रॉय ने डॉक्टर आरूषि से सारा केस डिस्कस कर लिया है और अख़्तर का बाकी ईलाज अपने हॉस्पिटल कोलकाता में करने की रजामंदी दे दी है।"तभी निशांत भी वहां शिवेंद्र और सौम्या के साथ आ पहुंचा।
"अभी कुछ दिनों के लिए आप सभी हमारे मेहमान रहें। फिर राधा को ले जाइएगा।"सैयद साहब राधा के जाने की ख़बर से उदास थे। उनके परिवार का अकेलापन राधा (आरूषि) और उसके बच्चे ने दूर कर दिया था।
"आई एम अफ्रेड, पर सैयद साहब आरूषि को जितनी जल्दी हो सके आप सभी से दूर अनुपम के साथ जाना होगा। उसके लिए अभी प्यार ज़हर ही समझें।"
"अब्बू आपके पास जल्द ही ले आऊंगा आपकी राधा को, मेरा वादा है आपसे।"अनुपम बोला।
भरे दिल से सैयद साहब और उनके परिवार ने अनुपम को इजाज़त दे दी थी पर मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। राधा का साथ उन्हें अपने अल्लाह का उपहार लगा था और अब जब उसने उनके बिजनेस और बेटे की जान बचाई थी तबसे सारा परिवार अल्लाह का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहा था।
अनुपम ने शाम को ही शिवेंद्र, सौम्या और मां के साथ अपने बच्चे को मुम्बई फ्लाईट से भेज दिया था । बच्चे से जुदाई ने सबकी आंखों में आंसू ला दिए थे। पर फिर भी आरूषि की भलाई के लिए सैयद साहब के परिवार ने विदाई करने का मन पक्का कर लिया था। रात को डॉक्टर रॉय को छोड़कर बाकी सभी डॉक्टर्स भी अपनी जगह लौट गए थे।
"निशांत मेरे भाई, तेरा यह अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा।"लौटते समय अनुपम ने निशांत को दिल से धन्यवाद दिया।
"कैसी बात करता है, मैंने भाभी के लिए तेरा प्यार ट्रेनिंग में देखा था और तूने भी तो मुझे मेरा प्यार हासिल करवाने में जी जान लगा दी थी।"निशांत ने उसे हौसला बढ़ाते हुए कहा।"कल की सुबह तेरे लिए कड़ी परीक्षा लेकर आएगी। हम सभी आस पास ही रहेंगे पर भाभी की नजरों से दूर। तू संभाल तो लेगा न ??"
"हम्म...."
और अब योजनानुसार सुबह उसे आरूषि के घर लौटने का इन्तजार था। उसने सबको हॉस्पिटल जाने और आरूषि को अकेले भेजने के लिए तैयार कर लिया था
बात दिल की:-
सबसे पहले आप सभी का आभार। अपने स्वास्थ्य की खराबी और नौकरी की जरूरतों के कारण आप तक अगला भाग भेजने में देरी के लिए आप सभी से क्षमा। रचना के अधिकतम दो भाग ही बचे हैं पर उन पाठकों के लिए, जिन्हें अनुपम और आरूषि के प्यार को नज़दीक से जानने की उत्सुकता है, एक एक्स्ट्रा भाग जरूर आएगा।
पक्का वादा.....
जल्दी ही आपके पास अगला अगला भाग लाने के वादे के साथ
जय जय
🙏🏻🙏🏻
Nisha Tewatiya
09-Jan-2022 04:24 PM
very nice
Reply
Ajay
09-Jan-2022 07:44 PM
Thanks Nisha ji
Reply
Aliya khan
09-Jan-2022 02:42 PM
सभी यही इंतज़ार में रहते हैं दोनो की कहानी ने आगे क्या होता है
Reply
Ajay
09-Jan-2022 07:44 PM
बहन आपको मेरी स्थिति मालूम है पर अब से कोशिश रहेगी कि अधिकतम 3 दिनों में अगला भाग प्रकाशित कर सकूं। अगर ऐसा न हो पाए तो मजबूरी जानकर क्षमा कर देना 🙏🏻🙏🏻
Reply
Roshan
09-Jan-2022 12:13 PM
Nice story
Reply
Ajay
09-Jan-2022 01:05 PM
Thanks Roshan ji
Reply